Friday, December 30, 2011

मोती की खुशबु

 मोती की खुशबु 
हे जलधि जब कोई ग़ोताखोर 
तुम्हारे गर्भ में ग़ोता  लगाता है 
जलधि का मन मयूर कहता है 
यदि तुम 
गर्भ में घुस मोती चुग 
दूर हो जाओंगे 
प्यार को वासना युक्त 
आँखों से देखा जायेंगा
किन्तु गर -
गर्भ में ही लीन हो जाओगे  
प्यार पूज्य हो जायेंगा 
फूल-सा चेहरा खिलेगा 
चमन में खुशबु महकेगी 
कोई किसी को 
आप्प्त्ती नहीं होगी  
रचना - लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर  
dated 31-12-11 

Thursday, December 29, 2011

माँ की महिमा

   माँ की महिमा
माँ शब्द गागर में सागर है 
माँ शब्द में ममता समायी है 
माँ शब्द में घुली मिठास है 
माँ शब्द में मान है सम्मान है 
माँ शब्द में मदिरा सी मस्ती है 
माँ शब्द में मधुर उल्लास है 
माँ शब्द में जादू सा सम्मोहन है  
माँ शब्द में मन मयूर का नाच है 
माँ शब्द मन मोहन से ऊपर है 
माँ का मिलन स्वर्ग का द्वार है 
माँ में  सारे जहां का संसार है
माँ शब्द मौक्ष का द्वार है  
द्वारा-लक्ष्मण लडीवाला,जयपुर

Wednesday, December 28, 2011

पहचान दोस्त कौन

 पहचान दोस्त कौन 
फूलो-सा ताज तो है दोस्ती-
 काँटों भरा ताज भी है दोस्ती 
हंसं-हंसाने वाला राज है दोस्ती -
 रुलाने वाला साज भी है  दोस्ती 
संकट की घडी में साथ दे-
 इसपर ही टिकी है दोस्ती की पहचान 
बिना परखे करली दोस्ती-
 उसके आचरण से यदि रहे अनजान 
तो जीवन बर्बाद कर सकती है दोस्ती
ऐसे में डूबती किस्ती बन सकती है दोस्ती 
जांच परख कर ही करे गहरी दोस्ती 
फिर सतत निभाओ दोस्ती,
ऐसी निभाओ आपस में संकट में दोस्त  
लोग कहे दो हस्त्हिया एक जान है दोस्त 
द्वारा-लक्ष्मण लड़ीवाला, जयपुर   

जागों युवको

            जागों युवको 


क्यों दे इनको वोट  या सपोर्ट 
कितने के तोड़े है इन्होने सपने
कितने को देते आये है ये चोट 
ये तो बस है काले धन के ही मतवाले 
आये दिन करते रहते कितने ही घोटाले
इनको तो प्रिय है अपने ही साले-साली 
इनको चाहिए सुंदरी और साकी -प्याली 
पांच साल पहले आये थे बनकर जन-सेवक 
अब कहते मै तो हूँ  नेता, जनता मेरी सेवक 
आखिर कितनी बार इनके हाथो छलेगी
जागरूक जनता आखिर कब नींद से जागेगी 
जागो युवको अन्ना अब हुन्कार भर रहा है 
आशा भरी निगाह से सर्वहारा देख रहा है | 
 जागो युवको पहचानो अब इन गद्दारों को 
माँ-भारती पुकार रही तुम सब पहरेदारो को 
लेखक - लक्ष्मण लड़ीवाला, जयपुर dt 28.12.11 

Monday, December 26, 2011

गाँधी अन्ना तुम्हे प्रणाम

      गाँधी अन्ना तुम्हे प्रणाम 

बिना बने बदचलन हिंसकऔर बेदाग, 
बिना उजाड़े  किसी स्त्री का सुहाग 
बिना किये देश-समाज को हवाले आग 
युवकों के दिल में लगाई जज्बे की आग
भ्रष्टाचार का सुरसा-सामान बढ़ता दानव
जिसमे पिस रहा है अकारण ही मानव
साथ तुम्हारे उठ खड़े है करने को अनशन
धरना देना हो या करो जेल भरो आन्दोलन
असर नहीं सद-बुद्धि प्रार्थना का नेताओं पर
आंच न आने देंगे गाँधीजी की सहादत पर
मजबूत लोकपाल बिना अब न युवा रुकेंगे
मरते दम तक अन्ना साथ तुम्हारे हम रहेंगे |
द्वारा - लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर Dt 26.12.11

Friday, December 23, 2011

पूज्य गौमाता

             पूज्य गौमाता 

गौऊमाता का है हमारे जीवन में बहुत महत्व
उसके दूध में है जीवन जीने के सारे तत्त्व 
 जिसमे है सभी देवी-देवताओं का वास 
जिसके गोबर में भी हो लक्ष्मी का वास् 
जिसके दूध से बना मक्खन खाए सावरा ,
कृष्णं-वन्दे जगतगुरु जिसको प्यारा 
उस गौमाता से नाता सदाही रहे हमारा |
द्वारा -लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर
 Dt 23-12-11

Tuesday, December 20, 2011

न दौलत खुश नसीब है न दर्द बद्नासीन

न दौलत खुश नसीब है न दर्द बद्नासीन 
दौलत का धनि गफलत में है की मै खुश नसीब हूँ 
दौलत अपने को बदनसीब कहती है इसलिए -
क्योंकि वह आपकी गिरफ्त में छटपटा रही है 
दर्द से पीड़ित भी गफलत में है की वह बदनसीब है 
दर्द अपने को खुशनसीब समझती है इसलिए -
क्योंकि उसके कारन आप से लोगो को सहानुभूति है 
दर्द खुशनसीब अपने को समझती है इसलिए 
क्योंकि कष्ट उठाकर आप प्रगति पथ पर अग्रसर है 
दर्द अपने को समझती है बदनसीब तब -
जब  कष्ट उठाने कर आगे बढ़ना नहीं चाहते 
जब आप अपना दर्द दूसरे के हवाले कर देते है 
दर्द कहती है मेरी खुश नसीबी और बदनसीबी को समझो
दौलत कहती है मेरा सदुपयोग कर मुझे देदो-
एक अवसर गरीब की भी सेवा कर इठलाने का 
इसपर माँ लक्ष्मी आप पर कृपा बरसती रहगे |
रचनाकर - लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर di २१.१२.11

Tuesday, December 6, 2011

मात्त्र-शक्ति को कोटिशः नमन

           मात्त्र-शक्ति को कोटिशः नमन
मात्त्र-शक्ति बनाती बच्चे को संस्कारवान ,
मात्त्रत्व शक्ति ही बनाती बच्चे को बलवान: 
अपना दूध पिला बच्चे का करती लालन-पालन 
मात्त्र्शक्ति देती है बच्चे को एश्वर्या, औ पराक्रम 
शक्ति स्वरूप माँ से ही शक्ति पा, करते देश रक्षा 
माँ सरस्वती के बगैर नहीं मिल सकती शिक्षा 
ऐसी माँ शक्तिस्वरूपा माँ को सत सत प्रणाम | 
रचयिता - लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर