Monday, March 16, 2015

गीत : मुखड़े व अंतरे का भार  - 16-16 मात्राएँ
रचना के सम्बन्ध में- रचना का केंद्रबिंदु“बंधन”विषय है | बहाने बना कर रोना, इसके विपरीत साहसी लोग किसी भी बंधन को बैसाखी बना रोना पसंद नहीं करते | समय सीमा का बंधन अगर समझे और कार्य करे तो सफलता मिले वरना तो ज्ञान होने पर भी सफलता संदिग्ध है | दुसरे“बंधन”शब्द सुख और दुख दोनों जगह ही बाध्यकारी है | सादर
मुखड़ा - बैसाखी वे नहीं ढूंढते
            क्रंदन जिनको नहीं सुहाता |
समय चक्र का बंधन समझे, वही समय पर पाँव बढाता,
पीछे जो रह गया दौड़ में, नहीं ज्ञान का लाभ उठाता |
बंधन पाखी ने कब माना, डाली डाली उड़ता जाता,
जिनको बंधन नहीं गँवारा, कब वह विरह वियोग जताता |
बैसाखी वे नहीं ढूंढते,
   क्रंदन जिनको नहीं सुहाता |
आलस सुस्ती ही बाधाएँ, बंधन उनका एक बहाना,
कर्मशील बंधन को तोड़े, जीवन सार उन्ही ने जाना |
उनको जीवन लगे सुहाना, वे बंधन का पहने बाना,
डरे न, कूदे दरियाँ में जो, संभव उनको सबकुछ पाना |
बैसाखी वे नहीं ढूंढते,
   क्रंदन उनको नहीं सुहाता |
सदा मुश्किलों से लड़ते जो, वे ही आपनी राह बनाते
काँटों पर चलते है वे ही, बंधन को वे दूर हटाते |
दुर्बल तन में भी दम भरते, वंदन करना उनको भाता,
आलोचक को जो भी चाहे, बंधन उनको नही लुभाता |
बैसाखी वे नहीं ढूंढते

   क्रंदन उनको नहीं सुहाता |      
-लक्ष्मण रामानुज लडीवाला 

Sunday, March 24, 2013

                                                                                                  Holi 68


 चढ़े प्रेम का रंग (दोहे)
                      
प्यार बिना नहि जिन्दगी,जीवन मृतक समान,
सतरंगी  बनकर  रहे,  करे  प्यार का  मान। 
                                                           
चले प्रीत की नर्सरी चुने प्यार का रंग,
भर पिचकारी नयन सेजीत प्रेम का जंग|

मन मेरा फागुन हुआउड़े पवन के संग,         
फागुन बरसाने लगा,  प्रेम प्रीत के रंग ।         
                                                            
मन की कलियाँ खिल उठीफागुन आया देह 
खुशबू  से मन झूमताअखियाँ बरसे नेह ।   
                                                             
साजन ऐसा प्यार दे,  कभी न छूटे रंग,           
सात जनम का साथ है,इक दूजे के संग ।      
                                                             
मन के बादल बरसतेघुले सांस में भंग,      
थिरके पाँव रुके नहीं ,  पूरे अंग मृदंग ।        
                                                            
भर पिचकारी रंग से,  करे प्रेम की  मार,      
तन चंगा मन बावरासहते रस की धार।     
                                                            
महँगाई की मार ने, महँगा किया  गुलाल,      
कर में नेह अबीर ले, साजन के कर लाल|      
                               
होली उत्सव है भलालोक पर्व का अंग 
रंग बिरंगे झूमते,  बजे ढोल ढप चंग । 
                                                              
दस्तक दी होलास्ट नेथिरके सबके अंग 
थिरके पाँव रुके नहींजैसे पी हो भंग । 
                                                              
होली के त्यौहार मेंचढ़े प्रेम का रंग,
भेद भाव को छोड़कर,होली खेले संग । 
                                                     
छंदों में भी दिख रहाहोली का सत्संग,
भंग चढ़ा कर लिख रहे,प्रेम भरे सब छंद ।
                                                           
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला                          

Saturday, March 23, 2013


फा+गुन का मौसम 
फाग खेलते=गुनगुनाने का मौसम -लक्ष्मण लडीवाला                                                                                                               
                                                            
ऋतुओं में ऋतू राज बसंत,
बसंत में फाल्गुन मास-
माह में भी होली ख़ास,  
गाँव गाँव खिलते, महकते 
चहुँ ओर खेतो में-
पीली पीली सरसों, 
कही पलाश के फूल,
तो कही अशोक,
उल्लास से भर जाता-
अल्हड तन मन;
फाल्गुन में ही 
होली की मस्ती 
एक ही कश्ती में- 
हमजोली घुमे बस्ती बस्ती 
संगीत सुनाती हवाएं 
आल्हाद  झूमता ये मन | 

होली में प्रेम का रंग 
चढ़ाया जैसे- 
राधा ने कृष्ण के संग,
समाहित है इसमें- 
समर्पण और यौवन के-
आत्मदान का भाव,
अभिमान छोड़कर 
सर्वस्व अर्पण |
मस्ती में झूमते-
लय.ताल यति-गति और मति से-
समाहित हो-
एक हो जाने का भाव,
नहीं रहता जीवन में-
फिर कोई आभाव |

बसंत ऋतू के फागुन मास में,
त्यौहार-होली,संस्कृति की झोली में
यह समय है फलने फूलने का,
प्रेम में, अनुराग में और प्यार में 
नृत्य करने का |
यह समय है -
हँसी ठिठोली का
नव सृजन का,
भौरों के गुनगुन का, 
हवाओं का हो जाने का,
फूलों की महक,और-
प्रकृति में खो जाने का | 
मतलब-
प्रकृति के रूप रंग,और-
मौज मस्ती में डूब जाने का |

रस राज श्री कृष्ण के तरह,
एक दूजे में समाहित होते 
राधा और श्री कृष्ण के-
प्यार की तरह,
भक्ति भाव में डूबी-
गोपियों की तरह
प्रेम में पागल-
मीरा की तरह |

यह समय है-
सहज भाव से अपनत्व का,
मन के मैलेपन को धोने का,
उदासी और नीरसता से परे  हो,
जीवन को बदरंग, और- 
बेसुरा कर रहे-
राग द्वेष को छोड़,
फाल्गुन के बहारों में,
झूमते मौसम की फुहारों में -
हर्षोल्लास भर -
आनंद लेने का | 

यही अर्थ और आशय है 
फा+गुन अर्थात 
अपनेपन के भाव से 
फाग खेलते,
गुनगुनाने का मौसम 
फाल्गुन मास है जो-
जीवन में बहुत ही ख़ास है |

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 


Thursday, March 21, 2013


प्रेम की अभिव्यक्ति- - - ।

प्रेम नाम है-- अहसास का,
अहसास जो करे -
कर सकता है,अभिव्यक्त वही
घर आँगन में प्यारी सी,  
कलियों की खुशबु से महक
सास का बहु से,
बहु का सांस से प्यार,
घर बने खुशहाल यही|

प्रेम नाम है मिलन का
दो दिल मिले  
एक दूजे के हुए, 
जिस्म दो, प्राण एक
एक दूजे में समाए।  
जैसे दीया और बाती 
प्रेम बरसे वही ।

प्रेम नाम है प्यार का-
जैसे राधा का कृष्ण से 
गोपियों का कृष्ण से
तब कहते है-
मेरे तो श्याम 
केवल एक वही।

प्रेम नाम है पूजा का 
हो मंदिर मस्जिद 
या गुरुद्वारे में 
नहीं तो मन मदिर -
में ही सही ।

प्रेम नाम है लगाव का 
एक दूजे से
चाहे हो प्राणी या पेड़ पौधे
कुछ भीकहावत है-
दिल लगाया जिससे
परी उसके आगे-
कुछ भी नहीं ।

प्रेम,प्यार  नाम है -
आत्मा से आत्मा-
के मिलन के अहसास का,
इस लोक में या परलोक में,
देवयोग से,
हो सकता है कही।
भौतिक रूप से पास रहे, 
यह जरूरी तो नहीं । 

सच्चा प्रेम वही 
जो दिल से करे
आँखों से बरसे, 
मिलने को तरसे-
किसी से न डरे, 
एक-दूजे पर मर मिटने 
का भाव,सच्चा प्रेम वही ।

प्रेम प्रेम होता है ,
रंग न उसका-
कोई होता है,
निश्चल मन होता है |
करने का -
न कोई ढंग होता है,
दूसरे को,प्रेम का -
अहसास हो- 
ढंग होता है वहीसही ।

प्रेम प्रेम होता है,
सम्पूर्ण समर्पण का 
भाव होता है मीरा जैसा, 
प्रेम में पागल होता है-
प्रेम करने वाला- 
फिर उन्हें समझा
कौन सकता है,
चतुर या बुद्धिमान 
उद्धव भी नहीं ।  

प्रेम नाम है त्याग का,
उर्मिला का पति लक्ष्मण से,
भरत का श्रीराम के प्रति,
त्याग,प्रेम का ही भाव था ।
विरह की आग में जलना,
क्या प्रेम का अहसास नहीं । 

प्रेम नाम है आसक्ति का,
स्नेह भाव का,भरत मिलाप
कृष्ण-सुदामा मिलन 
क्या प्रेम का -
उत्कृष्ट भाव नहीं ?

प्रेम नाम है सुद्रढ़ विश्वास का,
अटूट विश्वास,सदभाव, 
जहां न भ्रम पलता है.
न संशय होता है,
प्रेम प्रेम होता है-
अहसास जो कर सके,
अभिव्यक्त करे वही । 

अटूट प्रेम भाव है माँ का 
शिशु के प्रति, 
जो गर्भ में ही,अपने मन के-
ताने बाने से योग्य बनाती-
अभिमन्यु सा, फिर पालती-
दूध पिला स्तन से,शिक्षा दे,
पुत्रवत स्नेह कर- 
सुयोग्य बनती माँ ही |

योग्य बन व्यक्ति- 
असीम श्रद्धा और प्रेम रखे- 
जननी माँ से,मात्त्रभूमि से- 
जिसके रक्त का कण कण 
देन है उस माटी का, 
अर्पित करे- 
अपना तन मन धन,
मात्त्रभूमि का मान बढाने में,
अपने लहू का कतरा कतरा 
न्यौछावर करदे उसकी रक्षा में,
तो होगी परिलक्षित- माँ के प्रति  
प्रेम की पराकाष्ठा वही |

सम्पूर्ण प्रेम का पाठ है यह, 
अहसास जो करे,
कर सकता है, अभिव्यक्त वही |

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

Wednesday, March 6, 2013


 ह्रदय दीप जल जाय (दोहे)

दीपमालिका पर्व है, प्रगति का कर भान, 
थोडा श्रम अधिक करले, बढ़ जायेगा मान   ।  (1)

धन दौलत को छोड़कर, नहीं ओर है ध्यान 
अगर नहीं धन प्रेम का, लक्ष्मी करे न मान । (2)

निर्धन को नित डस रही, किस विध बेटी ब्याह,
इस दिवाली देख रहा,    धन लक्ष्मी की राह  । (3)
अँधेरी अमावस को, दियाबत्ती है आस,   
माँ कमला के आन की,रखे रात भर आस । (4)
माँ लक्ष्मी को भूल कर,  बेटा गया विदेश,
रूठ लक्ष्मी छोड़ चली,  कंगाली में देश ।    (5)
ज्योतिर्मय करे सबको, दीपक करते कर्म,
खुद रहे अन्धकार में, निभा रहे  स्व धर्म । (6)
बाती कहे दीपक से, तुझ बिन क्या मेरा,
मिल तेल में मै जलू , धर्म कहे यह मेरा । (7)

दीन दुखियो का जीवन, ज्योतिर्मय कर जाय   
सभी का गम दूर करे, ह्रदय दीप जल जाय। (8)

दीप सबके जीवन में, खुशिया खूब भर दे,
सबके आँगन कुटी में, प्रकाश पुंज भर दे ।  (9)

-   लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

Tuesday, August 14, 2012

भारत माँ की लाज बचाने 

हे भारत के लोगों जागों 
खेतिहर मजदूर,किसानो जागो
फिरसे  मोर्चा संभालो रे 
आंतकवादी घुसआये देश में, 
बाहर उन्हें निकालो रे  |

कलम के धनी लेखकों जागों 
बौद्धिक मनीषियों जागो, 
भ्रष्टाचारी लूट रहे देश को 
इनको सबक सिखाओ रे |

अत्याचारी मार रहे कोख है 
इज्जत लूट रहे माँ बहनों की
सौदागर है ये मानव अंगो के 
इनपर कालिख पोतो रे |

हे भारत के लोगो जागो 
योद्धाओ दिग्पालो जागो 
सीमा में घुस रहे पडौसी 
इनको बहार खदेड़ो  रे
भारत माँ की लाज बचाने
सब मिल आगे आओ रे | 

गंगा यमुना कर रहे प्रदूषित 
अवैध खनन से हो रहे पोषित 
खंडित कर रहे है धरती माँ को
इनको दूर भगाओ रे 
भारत माँ की लाज बचाने 
सब मिल आगे आओ रे |  

 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला


एक ही विधान है 

देने वाला दाता ही,  ताप है संताप है 
तुझे मिल रहा जो, कर्मो  का ही श्राप है 
 
मत समझ वे कमजोर, और तू बलवान है 
उनके बल पर ही बना, आज तू धनवान है 

भीड़ देखी हीन भाव से, वह मनुज शैतान है 
छीनकर सारा इनसे, कर रहा अभिमान है
 
चापलूसी धूर्तता से, हराभरा यह लॉन है
पानी के लिए है जमा, भीड़ को यह भान है 

दिन उनका  भी आएगा, नहीं तुझको ज्ञान है 
सोच आखिर इंसान से, इंसान का ही काम है 

उसके यहाँ न गरीब कोई, न कोई  धनवान है
गरीब और अमिर का, वहां एकही विधान है | 
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर