Friday, November 18, 2011

ये सूरत बदलनी चाहिए.


हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमलयसे कोई गंगा निकलनी चाहिए.
आज ये दीवार, पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए.

हर सड़क पर, हर गली में, हर नदी, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए.

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही,
मेरी कोशिश है की ये सूरत बदलनी चाहिए.

मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में ही सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए.
संकलन _ लक्ष्मण लड़ीवाला