चढ़े प्रेम का रंग (दोहे)
प्यार बिना नहि जिन्दगी,जीवन मृतक समान,
सतरंगी बनकर रहे, करे प्यार का मान।
चले प्रीत की नर्सरी, चुने प्यार का रंग,
भर पिचकारी नयन से, जीत प्रेम का जंग|
मन मेरा फागुन हुआ, उड़े पवन के संग,
फागुन बरसाने लगा, प्रेम प्रीत के रंग ।
भर पिचकारी नयन से, जीत प्रेम का जंग|
मन मेरा फागुन हुआ, उड़े पवन के संग,
फागुन बरसाने लगा, प्रेम प्रीत के रंग ।
मन की कलियाँ खिल उठी, फागुन आया देह
खुशबू से मन झूमता, अखियाँ बरसे नेह ।
साजन ऐसा प्यार दे, कभी न छूटे रंग,
सात जनम का साथ है,इक दूजे के संग ।
मन के बादल बरसते, घुले सांस में भंग,
थिरके पाँव रुके नहीं , पूरे अंग मृदंग ।
भर पिचकारी रंग से, करे प्रेम की मार,
तन चंगा मन बावरा, सहते रस की धार।
महँगाई की मार ने, महँगा किया गुलाल,
कर में नेह अबीर ले, साजन के कर लाल|
होली उत्सव है भला, लोक पर्व का अंग
रंग बिरंगे झूमते, बजे ढोल ढप चंग ।
दस्तक दी होलास्ट ने, थिरके सबके अंग
थिरके पाँव रुके नहीं, जैसे पी हो भंग ।
होली के त्यौहार में, चढ़े प्रेम का रंग,
भेद भाव को छोड़कर,होली खेले संग ।
छंदों में भी दिख रहा, होली का सत्संग,
भंग चढ़ा कर लिख रहे,प्रेम भरे सब छंद ।
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
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