गीत :
मुखड़े व अंतरे का भार - 16-16 मात्राएँ
रचना के सम्बन्ध में- रचना का केंद्रबिंदु“बंधन”विषय
है | बहाने बना कर रोना, इसके विपरीत साहसी लोग किसी भी बंधन को
बैसाखी बना रोना पसंद नहीं करते | समय सीमा का बंधन अगर समझे और कार्य करे तो सफलता मिले वरना तो
ज्ञान होने पर भी सफलता संदिग्ध है |
दुसरे“बंधन”शब्द सुख और दुख दोनों जगह ही बाध्यकारी है | सादर
मुखड़ा - बैसाखी वे नहीं ढूंढते
क्रंदन जिनको नहीं सुहाता |
समय चक्र का बंधन समझे, वही समय पर पाँव
बढाता,
पीछे जो रह गया दौड़ में, नहीं ज्ञान का लाभ
उठाता |
बंधन पाखी ने कब माना, डाली डाली उड़ता जाता,
जिनको बंधन नहीं गँवारा, कब वह विरह वियोग
जताता |
बैसाखी वे नहीं ढूंढते,
क्रंदन जिनको नहीं सुहाता |
आलस सुस्ती ही बाधाएँ, बंधन उनका एक बहाना,
कर्मशील बंधन को तोड़े, जीवन सार उन्ही ने
जाना |
उनको जीवन लगे सुहाना, वे बंधन का पहने बाना,
डरे न, कूदे दरियाँ में जो, संभव उनको सबकुछ
पाना |
बैसाखी वे नहीं ढूंढते,
क्रंदन उनको नहीं सुहाता |
सदा मुश्किलों से लड़ते जो, वे ही आपनी राह
बनाते
काँटों पर चलते है वे ही, बंधन को वे दूर
हटाते |
दुर्बल तन में भी दम भरते, वंदन करना उनको
भाता,
आलोचक को जो भी चाहे, बंधन उनको नही लुभाता |
बैसाखी वे नहीं ढूंढते
क्रंदन
उनको नहीं सुहाता |
-लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
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