Thursday, March 21, 2013


प्रेम की अभिव्यक्ति- - - ।

प्रेम नाम है-- अहसास का,
अहसास जो करे -
कर सकता है,अभिव्यक्त वही
घर आँगन में प्यारी सी,  
कलियों की खुशबु से महक
सास का बहु से,
बहु का सांस से प्यार,
घर बने खुशहाल यही|

प्रेम नाम है मिलन का
दो दिल मिले  
एक दूजे के हुए, 
जिस्म दो, प्राण एक
एक दूजे में समाए।  
जैसे दीया और बाती 
प्रेम बरसे वही ।

प्रेम नाम है प्यार का-
जैसे राधा का कृष्ण से 
गोपियों का कृष्ण से
तब कहते है-
मेरे तो श्याम 
केवल एक वही।

प्रेम नाम है पूजा का 
हो मंदिर मस्जिद 
या गुरुद्वारे में 
नहीं तो मन मदिर -
में ही सही ।

प्रेम नाम है लगाव का 
एक दूजे से
चाहे हो प्राणी या पेड़ पौधे
कुछ भीकहावत है-
दिल लगाया जिससे
परी उसके आगे-
कुछ भी नहीं ।

प्रेम,प्यार  नाम है -
आत्मा से आत्मा-
के मिलन के अहसास का,
इस लोक में या परलोक में,
देवयोग से,
हो सकता है कही।
भौतिक रूप से पास रहे, 
यह जरूरी तो नहीं । 

सच्चा प्रेम वही 
जो दिल से करे
आँखों से बरसे, 
मिलने को तरसे-
किसी से न डरे, 
एक-दूजे पर मर मिटने 
का भाव,सच्चा प्रेम वही ।

प्रेम प्रेम होता है ,
रंग न उसका-
कोई होता है,
निश्चल मन होता है |
करने का -
न कोई ढंग होता है,
दूसरे को,प्रेम का -
अहसास हो- 
ढंग होता है वहीसही ।

प्रेम प्रेम होता है,
सम्पूर्ण समर्पण का 
भाव होता है मीरा जैसा, 
प्रेम में पागल होता है-
प्रेम करने वाला- 
फिर उन्हें समझा
कौन सकता है,
चतुर या बुद्धिमान 
उद्धव भी नहीं ।  

प्रेम नाम है त्याग का,
उर्मिला का पति लक्ष्मण से,
भरत का श्रीराम के प्रति,
त्याग,प्रेम का ही भाव था ।
विरह की आग में जलना,
क्या प्रेम का अहसास नहीं । 

प्रेम नाम है आसक्ति का,
स्नेह भाव का,भरत मिलाप
कृष्ण-सुदामा मिलन 
क्या प्रेम का -
उत्कृष्ट भाव नहीं ?

प्रेम नाम है सुद्रढ़ विश्वास का,
अटूट विश्वास,सदभाव, 
जहां न भ्रम पलता है.
न संशय होता है,
प्रेम प्रेम होता है-
अहसास जो कर सके,
अभिव्यक्त करे वही । 

अटूट प्रेम भाव है माँ का 
शिशु के प्रति, 
जो गर्भ में ही,अपने मन के-
ताने बाने से योग्य बनाती-
अभिमन्यु सा, फिर पालती-
दूध पिला स्तन से,शिक्षा दे,
पुत्रवत स्नेह कर- 
सुयोग्य बनती माँ ही |

योग्य बन व्यक्ति- 
असीम श्रद्धा और प्रेम रखे- 
जननी माँ से,मात्त्रभूमि से- 
जिसके रक्त का कण कण 
देन है उस माटी का, 
अर्पित करे- 
अपना तन मन धन,
मात्त्रभूमि का मान बढाने में,
अपने लहू का कतरा कतरा 
न्यौछावर करदे उसकी रक्षा में,
तो होगी परिलक्षित- माँ के प्रति  
प्रेम की पराकाष्ठा वही |

सम्पूर्ण प्रेम का पाठ है यह, 
अहसास जो करे,
कर सकता है, अभिव्यक्त वही |

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

No comments:

Post a Comment