एक ही विधान है
देने वाला दाता ही, ताप है संताप है
तुझे मिल रहा जो, कर्मो का ही श्राप है
मत समझ वे कमजोर, और तू बलवान है
उनके बल पर ही बना, आज तू धनवान है
भीड़ देखी हीन भाव से, वह मनुज शैतान है
छीनकर सारा इनसे, कर रहा अभिमान है
चापलूसी धूर्तता से, हराभरा यह लॉन है
पानी के लिए है जमा, भीड़ को यह भान है
दिन उनका भी आएगा, नहीं तुझको ज्ञान है
सोच आखिर इंसान से, इंसान का ही काम है
उसके यहाँ न गरीब कोई, न कोई धनवान है
गरीब और अमिर का, वहां एकही विधान है |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
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